मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था। उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज
लीडर कभी असफल शब्द का इस्तेमाल नहीं करते। वे कभी असफलता के संदर्भ में सोचते तक नहीं हैं। वे मूल्यवान सबक़ पहचानते हैं, सीखने के अनुभवों को ग्रहण करते हैं और अल्पकालीन झटकों को झेलते हैं, लेकिन कभी असफलता के संदर्भ में सोचते तक नहीं हैं। ओरिसन स्वेट मार्डेन ने लिखा था, “उस इंसान के लिए कोई असफलता नहीं है, जिसे अपनी शक्ति का अहसास है, जो जानता ही नहीं है कि वह कब परास्त हो चुका है, संकल्पवान प्रयास के लिए कोई असफलता नहीं होती, यानी अजेय इच्छाशक्ति। उस व्यक्ति के लिए कोई असफलता नहीं होती, जो गिरने के बाद हर बार खड़ा हो जाता है , जो रबड़ की गेंद की तरह वापस उछल जाता है, तब तक जुटा रहता है, जब हर कोई हौसला छोड़ देता है, जो तब भी धकाता रहता है, जब बाक़ी सभी मुड जाते हैं।” बहुत साल पहले एक युवा एक्ज़ीक्यूटिव ने आईबीएम के थॉमस जे. वॉटसन से पूछा था, “मैं अपने करियर में ज़्यादा तेज़ी से कैसे आगे बढ़ सकता हूँ?" वॉटसन का जवाब था, "अपनी असफलता की दर दोगुनी कर लो ।” दूसरे शब्दों में, आप जितनी ज़्यादा बार असफल होते और सीखते हैं, आप उतनी ही ज़्यादा तेज़ी से सफल होंगे। कुछ लीडर तो यह भी कह