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मन ही प्रधान है, स्वामी है, सुख-दुख का कारण है #धम्मपद💫1

मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है।  जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...

पैसा महत्त्वपूर्ण तो है, परंतु वह साधन है, साध्य नहीं है कैसे? जॉन डी. रॉकफेलर

जॉन डी. रॉकफेलर स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी के संस्थापक और प्रख्यात अमेरिकी उद्योगपति बहुत कम शिक्षित थे। सोलह वर्ष की उम्र में वे बुककीपर का काम करने लगे। उनके मन में बिज़नेस करने का सपना था, इसलिये उन्होंने 23 वर्ष की उम्र में ऑयल बिज़नेस के क्षेत्र में क़दम रखा। अपनी बुद्धि से प्रतियोगियों को परास्त करते हुए रॉकफेलर अमेरिका की 90 प्रतिशत ऑयल रिफाइनरीज के मालिक बन गये। अमीर बनने के लिये रॉकफेलर दिन-रात काम में जुटे रहते थे। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, जुझारू प्रवृत्ति, लगन तथा प्रतियोगी स्वभाव की वजह से वे अमेरिका के ऑयल किंग बनने में सफल हो पाये।

वे चौबीसों घंटे काम के बारे में ही सोचते रहते थे। मौज-मस्ती या मनोरंजन में वे ज़रा भी वक़्त बर्बाद नहीं करते थे। वे कभी थियेटर नहीं जाते थे, ताश नहीं खेलते थे, पार्टी में नहीं जाते थे। उनके लिये काम ही सब कुछ था। एकनिष्ठता से अपने लक्ष्य का पीछा करने की वजह से ही वे बिलियनेअर बनने में सफल हुए। चिंता, तनाव व दबाव की जीवनशैली का उनके शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ा। वे बीमार पड़ गये। डॉक्टरों ने उनसे स्पष्ट कह दिया कि या तो वे रिटायर हो जायें या फिर मरने की तैयारी कर लें। 

मौत के इतने क़रीब आने के बाद रॉकफेलर को यह समझ में आया कि पैसा महत्त्वपूर्ण तो है, परंतु वह साधन है, साध्य नहीं है। उन्होंने चिकित्सा तथा शिक्षा के विकास के लिये लगभग 55 करोड़ डॉलर दान में दिये और रॉकफेलर फ़ाउंडेशन की स्थापना की, जो उनके मरने के बाद भी दुनिया भर में बीमारी और अज्ञान से लड़ रहा है।

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