एक बड़ा लक्ष्य तय करे और उसे हासिल करने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य बनाएं, एक सपना देखो, किसी सपने के लिए प्रयासरत हुए बिना अपने उज्जवल भविष्य की रचना आपके लिए कदाचित संभव न हो। जो कुछ उपलब्धि चाहते हो सपनों के पीछे पड़ जाना मानव स्वभाव के ताने-बाने में विद्यमान है, क्योंकि आपने अब तक भविष्य के बारे में विचार प्रक्रिया प्रारंभ ही नहीं की है। यदि आप स्वयं को आदर्शविहीन पायें तो अपने खास सपने की खोज करें एवं भविष्य की रचना में जुट जायें। उस सपने को सच बनाने का प्रयास प्रारंभ करना ही आपका अगला कदम है। सर्वप्रथम, यह आवश्यक है कि आपने सपना देख लिया है, किन्तु यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि आप उसे साकार करने में प्रयासरत हों; सुनने में यह बात ठीक लगती है किन्तु वैसा कर पाना आसान भी नहीं है। ऐसे स्वप्नदृष्टा न बनें जिसे केवल सपनों के सच होने का इंतजार रहता है। सपनों का सच होना उस दिशा में किये गये प्रयास के आकार एवं उसके लिए आपके आग्रह का ही परिणाम है। मैं नहीं चाहता कि कोई भी अपने आदशों के बारे में सपने देखते हुए जीवन-यात्रा करे। अतः लगातार स्वयं से प्रश्न करते रहें "इस सपने को सच क...
विधाता ने किसी को सुंदरता ज़्यादा दी है, किसी को कम दी है। किसी को बुद्धि ज़्यादा दी है, किसी को कम दी है। किसी को दौलत ज़्यादा दी है, किसी को कम दी है। लेकिन समय उसने सबको बराबर दिया है एक दिन में 24 घंटे। समय ही एकमात्र ऐसी दौलत है, जिसे आप बैंक में जमा नहीं कर सकते। समय का गुज़रना आपके हाथ में नहीं होता। यह तो घड़ी की सुई के साथ लगातार आपके हाथ से फिसलता रहता है। आपके हाथ में तो बस इतना रहता है कि आप इस समय का कैसा उपयोग करते हैं। अगर सदुपयोग करेंगे, तो अच्छे परिणाम मिलेंगे; अगर दुरुपयोग करेंगे, तो बुरे परिणाम मिलेंगे।
ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारे पास कहने को तो 24 घंटे होते हैं, लेकिन वास्तव में इतना समय हमारे हाथ में नहीं होता। सच तो यह है कि समय के एक बड़े हिस्से पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। 8 घंटे नींद में चले जाते हैं और 2 घंटे खाने-पीने, तैयार होने एवं नित्य कर्म आदि में चले जाते हैं। यानी हमारे हाथ में दरअसल 14 घंटे का समय ही होता है। दूसरे शब्दों में, जीवन में सिर्फ़ 58 प्रतिशत समय पर हमारा नियंत्रण संभव है, जबकि 42 प्रतिशत समय हमारे नियंत्रण से बाहर होता है। सुविधा की दृष्टि से यह मान लें कि 40 प्रतिशत समय पर हमारा नियंत्रण नहीं होता, जबकि 60 प्रतिशत समय पर होता है।
इस संदर्भ में सदियों पहले भर्तृहरि की कही गई बात आज भी प्रासंगिक है, 'विधाता ने मनुष्य की आयु 100 वर्ष तय की है, जिसमें से आधी रात्रि में चली जाती है, बची आधी में से भी आधी बाल्यावस्था और वृद्धावस्था में गुज़र जाती है और बाक़ी बचे 25 वर्षों में मनुष्य को रोग और वियोग के अनेक दुख झेलने पड़ते हैं और नौकरी-चाकरी करनी पड़ती है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि जलतरंग के समान चंचल इस जीवन में लेश मात्र सुख भी नहीं है।'
समय अनमोल है, क्योंकि वास्तव में समय ही संसार की एकमात्र ऐसी चीज़ है, जो सीमित है। अगर आप दौलत गँवा देते हैं, तो दोबारा कमा सकते हैं। घर गँवा देते हैं, तो दोबारा पा सकते हैं। लेकिन अगर समय गँवा देते हैं, तो आपको वही समय दोबारा नहीं मिल सकता। हमारे पास जीवन में बहुत कम समय है और यह समय सीमित है। यदि हम अपनी अपेक्षित आयु सौ वर्ष मान लें, तो हमारे पास जीवन में कुल 36,500 दिन ही होते हैं। इसी समय हिसाब लगाकर देखें कि इन 36,500 दिनों में से आपके पास कितने दिन बचे हैं, जिनमें आपको अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है?
अगर हम जीवन में कुछ करना, कुछ बनना, कुछ पाना चाहते हैं, तो यह अनिवार्य है कि हम समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना सीख लें, ताकि इस धरती पर अपने सीमित समय में हम वह सब हासिल कर सकें, जो हम हासिल करना चाहते हैं - चाहे वह दौलत या शोहरत हो, सुख या सफलता हो।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।