मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था। उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज
वियान में बिताया यह समय मेरे जीवन का सबसे अधिक उदासीनता का समय था आज भी उसकी स्मृति मुझे अत्यंत उदासीन बना देती है, फेसियन कस्बे में किस प्रकार मैंने गरीबी के पांच वर्ष बिताए, और उन पांच वर्षों में किस कठिनाई से मैं अपनी आजीविका कमाता था, यह सब बड़ा ही दुखद है।
मैं पहले दैनिक श्रमिक रूप में और फिर लघु चित्रों के निर्माता चित्रकार के रूप में जीवन जीता था, यह दोनों धंधे बहुत कम आय वाले थे, इनसे होने वाली आय से तो मेरी भूख भी पूरी तरह नहीं मिटती थी, अब मैं क्या कहूं यह भूख तो मेरे जीवन की स्थाई साथी बन गई, जिसने मुझे कभी भी नहीं छोड़ा, मेरी हर आवश्यकता के साथ जुड़ी रही, मेरे लिए पुस्तक खरीदने का अर्थ था आने वाले दिनों में भूखा रहना।
फेसियन जाति के एक व्यक्ति से मेरी मित्रता हो गई, इस बेदर्द मित्र के साथ मेरा हमेशा झगड़ा रहता था, परंतु फिर भी उस दौरान इस मित्र से मैंने जितना सीखा उतना पहले कभी नहीं सीखा था, कभी वास्तुकला के अध्ययन के लिए तो कभी संगीत समारोह में जाने के लिए और फिर कभी पुस्तकें खरीदने के लिए मुझे भूखा रहना पड़ता था, इन तीनों के अतिरिक्त मुझे जीवन में और कुछ अच्छा नहीं लगता था।
मैंने उन दिनों बहुत पढ़ा और पढ़ने के बाद उस पर गंभीरता से मनन किया, काम करने के बाद जितना समय बचता था, मैं निष्ठापूर्वक अध्ययन करता था, इस तरह कुछ ही वर्षों में मैंने ज्ञान का बृहद भंडार एकत्रित कर लिया, जो आज भी मेरे लिए लाभदायक हैं।
उन वर्षों में मेरे मस्तिष्क में जीवन और संसार के प्रति एक निश्चित दृष्टिकोण स्थिर हो गया, और यह उस समय मेरे आचरण के स्थायी आधार बन गये, तब से इस आधार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
आज मेरा पक्का विश्वास है, कि सामान्यतया यौवन में ही रचनात्मक विचारों का आधार तैयार होता है, चाहे वे विचार कैसे भी क्यों न हो, मैं आयु की बुद्धिमता और यौवन की रचनात्मक प्रतिभा में अंतर करता हूं, आयु की बुद्धिमता अधिक गहराई और दूरदर्शिता से पैदा होती है, जो लंबे जीवन के अनुभवों पर आधारित होती है।
जबकि यौवन की प्रतिभा विचारों और धारणाओं की असीम शक्ति से अंकुरित होती है, परंतु जिन्हें आधिक्य के कारण व्यवहार में नहीं लाया जा सकता, यह भविष्य के लिए भवन सामग्री और योजनाएं उपलब्ध करवाती है, यदि वर्षों की बुद्धिमता ने यौवन की रचनात्मक प्रतिभा को न बुझा दिया हो तो उनसे ही आयु के पत्थर लेकर इमारत का निर्माण होता है।
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