अक्सर हमारी दिनचर्या इस तरह की होती है कि हमारे सामने जो काम आता है, हम उसे करने लग जाते हैं और इस वजह से हमारा सारा समय छोटे-छोटे कामों को निबटाने में ही चला जाता है। हमारे महत्वपूर्ण काम सिर्फ़ इसलिए नहीं हो पाते, क्योंकि हम महत्वहीन कामों में उलझे रहते हैं। महत्वाकांक्षी व्यक्ति को इस बारे में सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि सफलता पाने के लिए यह आवश्यक है कि महत्वपूर्ण काम पहले किए जाएँ। हमेशा याद रखें कि सफलता महत्वहीन नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण कामों से मिलती है, इसलिए अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट रखें और अपना समय महत्वहीन कामों में न गँवाएँ। इसलिए समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग का तीसरा सिद्धांत है : सबसे महत्वपूर्ण काम सबसे पहले करें। समय के संबंध में अपनी प्राथमिकताएँ तय करने का एक उदाहरण देखें। 'एक मशहूर संगीतज्ञ जब वायलिन बजाना सीख रही थीं, तो उन्होंने पाया कि उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। कारण खोजने पर उन्हें पता चला कि संगीत का अभ्यास करने से पहले घर साफ़ करने, सामान व्यवस्थित करने, खाना पकाने आदि कार्यों में उनका बहुत समय लग जाता है, इसलिए उन्हें वायलिन के अभ्यास के लिए कम समय मिल पाता ह
एडोल्फ हिटलर के माता पिता की मृत्यु के बारे में अगर हमें जानकारी होती है, तो इस किताब के द्वारा होती है, जिस किताब को हिटलर ने स्वयं लिखा था, इस किताब का नाम है, मेरा संघर्ष अर्थात MEIN KAMPF इसमें हिटलर ने अपने बारे में विस्तृत रूप से बताया है, इस किताब को हिटलर ने स्वयं लिखा था।
इसमें बताया गया है, कि हिटलर के पिता की मृत्यु जब हिटलर 13 वर्ष का भी नहीं था, उस समय उसके पिता की मृत्यु हो गई थी, और 2 वर्ष पश्चात् ही उसकी माता की भी मृत्यु हो गई थी, उस समय उसकी उम्र 16 वर्ष से भी कम थी।
अगर हिटलर के पिता की बात करें तो हिटलर के पिता एक गरीब और झोपड़ी में रहने वाले के पुत्र थे, उन्होंने बचपन में ही घर छोड़ दिया था, क्योंकि उन्हें कुछ बनना था, तब उनकी उम्र केवल 13 वर्ष की रही होगी, उनके गांव वालों ने हिटलर के पिता को काफी समझाया, लेकिन वे नहीं माने, और किसी नए हुनर को सीखने के लिए वियना चले गए।
उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में कारीगरी की ट्रेनिंग की परीक्षा पास की, लेकिन वे उस काम से भी संतुष्ट नहीं थे, उन्हें तो एक सरकारी अधिकारी बनना था, उन्होंने इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष किया, और वे 23 वर्ष की उम्र में अपने ध्येय को प्राप्त करने में सफल रहे, और वे एक असैनिक कर्मचारी बन गए।
हिटलर के माता पिता की मृत्यु के पश्चात उन्हें अनाथ के रूप में मिलने वाला सरकारी भत्ता जीवन की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था, जिसके फलस्वरूप हिटलर को अपनी आजीविका स्वयं कमानी पड़ी, उन्होंने एक दिन अपने कपड़े और बिस्तर आदि को बांधकर तथा अपने दिल में एक अदम्य साहस लिए वे रियालशूल से वियना के लिए चल पड़े, उन्होंने अपने भाग्य से लड़ने की ठीक उसी प्रकार चेष्टा की, जिस तरह 50 वर्ष पहले उनके पिता ने की थी, हिटलर ने अब कुछ बनने का दृढ़ निश्चय कर लिया था, परंतु सरकारी कर्मचारी बनने को वे कदापि तैयार नहीं थे।
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