अक्सर हमारी दिनचर्या इस तरह की होती है कि हमारे सामने जो काम आता है, हम उसे करने लग जाते हैं और इस वजह से हमारा सारा समय छोटे-छोटे कामों को निबटाने में ही चला जाता है। हमारे महत्वपूर्ण काम सिर्फ़ इसलिए नहीं हो पाते, क्योंकि हम महत्वहीन कामों में उलझे रहते हैं। महत्वाकांक्षी व्यक्ति को इस बारे में सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि सफलता पाने के लिए यह आवश्यक है कि महत्वपूर्ण काम पहले किए जाएँ। हमेशा याद रखें कि सफलता महत्वहीन नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण कामों से मिलती है, इसलिए अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट रखें और अपना समय महत्वहीन कामों में न गँवाएँ। इसलिए समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग का तीसरा सिद्धांत है : सबसे महत्वपूर्ण काम सबसे पहले करें। समय के संबंध में अपनी प्राथमिकताएँ तय करने का एक उदाहरण देखें। 'एक मशहूर संगीतज्ञ जब वायलिन बजाना सीख रही थीं, तो उन्होंने पाया कि उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। कारण खोजने पर उन्हें पता चला कि संगीत का अभ्यास करने से पहले घर साफ़ करने, सामान व्यवस्थित करने, खाना पकाने आदि कार्यों में उनका बहुत समय लग जाता है, इसलिए उन्हें वायलिन के अभ्यास के लिए कम समय मिल पाता ह
हिटलर का जन्म जर्मन ऑस्ट्रिया के एक छोटे से कस्बे "ब्राउनाउ आन द इन" में हुआ, हिटलर की विचारधारा थी कि जर्मन ऑस्ट्रिया हमारी मातृभूमि महान जर्मनी को वापस मिलना ही चाहिए, यदि इस पूर्ण गठन से देशवासियों को आर्थिक हानि भी उठानी पड़े तो भी मैं चाहूंगा कि यह पूर्ण गठन अवश्य ही होना चाहिए, क्योंकि एक ही खून के लोगों का एक ही राइख अर्थात साम्राज्य में होना जरूरी है।
इस छोटे से कस्बे में मेरे माता-पिता निवास करते थे, यह कस्बा खून से तो बवेरिया था, परंतु ऑस्ट्रिया राज्य के नियंत्रण में था, मेरे पिता एक असैनिक कर्मचारी थे, मेरी माता घर की देखभाल करती थी, कुछ ही वर्षों के बाद मेरे पिता को यह सीमावर्ती कस्बा इसलिए छोड़ना पड़ा, क्योंकि उन्हें इस घाटी में स्थित पसाऊ में नया पद ग्रहण करना पड़ा था।
पसाऊ में कुछ देर टिकने के बाद मेरे पिता को भी लिंज भेज दिया गया, जहां वह अनंत: सेवानिवृत्त होकर थोड़ी सी पेंशन पर रहने लगे, वास्तव में मेरे पिता एक गरीब और झोपड़ी में रहने वाले के पुत्र थे, उन्होंने निराश होकर बचपन में ही घर छोड़ दिया था, अनुभवी गांव वासियों के लाख समझाने पर भी वे नहीं माने, और किसी हुनर को सीखने के लिए वियाना चले गए, जब यह 13 वर्ष का लड़का 17 वर्ष का युवा बना, तो कारीगरी की ट्रेनिंग परीक्षा पास करने के बाद भी संतुष्ट नहीं हुआ।
पहले वे असैनिक कर्मचारी बन गये, मेरे विचार से उस समय उनकी आयु 23 वर्ष रही होगी, जब उन्होंने अपना विनिर्दिष्ट एवं निश्चित पद प्राप्त कर लिया, इसी प्रकार मेरे पिता ने अपने निश्चित ध्येय को प्राप्त तो कर लिया, अंत में जब वे 56 वर्ष के हुए, तो उन्होंने सक्रिय सेवा कार्य छोड़ दिया, समय का यह वह दौर था जब मैंने अपने जीवन के प्रारंभिक ध्येय निश्चित करने शुरू किए।
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