मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
जब किसी व्यक्ति मैं बीमारी के लक्षण नजर आते हैं और उसको मालूम होता है कि मैं बीमार हूं तो वह उसका इलाज लेने के लिए किसी डॉक्टर के पास जाता है और डॉक्टर द्वारा उसके बीमारी का पता बताया जाता है कि आप में यह बीमारी है जब व्यक्ति को यह पता हो जाता है कि मुझ में इस प्रकार की बीमारी है तो यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस बीमारी को कितना महत्व देता है।
अगर वह दिन भर उसी बीमारी के बारे में सोचता है तो वह बीमारी धीरे-धीरे उसके शरीर पर हावी होने लग जाएगी और एक समय आएगा कि इस बीमारी का इलाज होना बंद हो जाएगा और वह इस बीमारी से पूर्ण रूप से ग्रसित हो जाएगा।
व्यक्ति का दिमाग उसी प्रकार चलता है जिस प्रकार उसके शरीर की क्रिया चलती है यह आप पर निर्भर करता है क्या आप किसी को कितना महत्व दे पाते हैं।
इस सांसारिक जीवन में एक विशेष बात यह है कि आप जिस को महत्व देते हैं वह धीरे-धीरे बढ़ने लगती है चाहे वह आपका शरीर हो या आपके पास रुपया हो या बीमारी हो इन सभी का दायरा व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस को कितना महत्व देता है जिसको जितना अधिक महत्व देगा वह उतना तीव्र गति से बढ़ेगा इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
कि जब भी आपके शरीर में किसी प्रकार की बीमारी उत्पन्न हो तो आप उसका इलाज ले जरूर लेकिन उस बीमारी को अपने दिमाग में स्थान कभी ना दें जब आप उस को स्थान नहीं देंगे तो धीरे-धीरे वह बीमारी आपके शरीर से खत्म हो जाएगी और आने वाले समय में जो आप मेडिसन ले रहे होते हैं उनकी आवश्यकता भी खत्म हो जाएगी।
यह सब शरीर में किस प्रकार होता है यह भी जानना आवश्यक है जब किसी बीमारी के बारे में हम जानते हैं या सुनते हैं तो उस समय हमारे ऊपर उसका प्रभाव नहीं होता है अगर हम उसको स्थान नहीं देते हैं तो जिस प्रकार हम उसको सुनते हैं वैसे ही वह हमारे दिमाग से बाहर चली जाती है और हमारे पर उसका प्रभाव नहीं होता, अगर हमारा दिमाग उसको स्थान देता है और हमें ही मालूम नहीं होता कि हमने इसको स्थान दिया है तो उसका प्रभाव लंबे समय बाद जिसकी अवधि आप निश्चित नहीं कर सकते देखने को मिलता है।
जिस प्रकार आपका दिमाग आपके शरीर को आपके हारमोंस के द्वारा नियंत्रण प्रदान करता है उसी प्रकार जब आप किसी बीमारी को स्थान दे देते हैं तो आप पर निर्भर करता है कि आप उसको कितना महत्व कम दे पाते हैं और कितना दिमाग से बाहर निकाल पाते हैं जब आपके दिमाग से उस बीमारी का स्थान समाप्त हो जाएगा तो ऑटोमेटिकली आपके शरीर से वह बीमारी समाप्त हो जाएगी।
बीमारी समाप्त करने में मुख्य भूमिका आपके दिमाग की होती हैं जो आपके शरीर के हारमोंस को नियंत्रण प्रदान करता है हारमोंस ऐसी शक्ति होती हैं जो शरीर को बनाने व बिगाड़ने का काम करता है इसलिए यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने दिमाग पर कितना कंट्रोल रख पाते हो।
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